पेण्णार नदी के दक्षिणी भाग में स्थित,
तिरुवेण्णैनल्लूर के अरुट्तुरै में प्रतिष्ठित प्रभु!
तुमने शत्राुओं के त्रिपुर को जलाकर कर दिया! भस्म,
स्वर्णिम जटा में आकाश गंगा को दिया आश्रय,
इन महिमाओं से अनभिज्ञ मैं उलझ रहा हँू व्यर्थ,
अब यह प्रतिकूल कथन कहाँ तक उचित है कि-
मैं आपका दास नहीं।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम, 2007