उमड़ घुमड़कर आनेवाली, बादलों की भाँति बहनेवाली,
लहरों से तट को कुरेदकर धरती को शस्य-श्यामला करनेवाली,
अपनी कीर्ति फैलानेवाली,
उज्ज्वल मणियों से भरी पेण्णार नदी के दक्षिणी भाग में स्थित
तिरुवेण्णैनल्लूर के अरुट्तुरै देवालय में प्रतिष्ठित प्रभु का
मैं तिरुवारूर निवासी पहले से ही सेवक हूँ।
अब मैं कैसे कहूँ कि मैं उनका सेवक नहीं।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम, 2007