मेरे आराध्यदेव षिव वीणा के सप्ततारों द्वारा झंकृत
होने वाले नाद स्वरूप हैं।
उसे सुनकर आनन्दित होने वाले मधुर फल स्वरूप हैं।
देवों को डराने वाले त्रिपुर राक्षसों के पुरों को मेरुपर्वत का धनुष बनाकर अग्निबाण से जलाने वाले हैं।
प्रभु ने समुद्र से उद्भूत भयंकर हलाहल विष को
अपने कंठ में टिकाकर देवों की रक्षा की।
कामेच्छा के वषीभूत न होने वाले तपस्वियों के हृदय पर विराजने वाले हैं।
वे पुलि़यूर में प्रतिष्ठित हैं।
आपका स्मरण न करने पर यह मानव जीवन व्यर्थ है।
रूपान्तरकार - डॉ.एन.सुन्दरम 2000