अदिकै के केडिलम् नदी-तट पर स्थित
वीरस्थान में प्रतिष्ठित मेरे आराध्यदेव!
आप स्वर्णसम कांतिवाले वपुधारी हंैं।
उलझे हुए जटा-जूटधारी हैं।
क्षीण चन्द्रकलाधारी हैं।
दुःख, शोक, रोग से मुझे बचाइये।
आपको मेरे जैसे भक्त भली-भाँति समझ नहीं पायेंगेे।
यही दास की शोभा है।
अंत में सर्वत्र प्रेम ही अमर रहेगा।
रूपान्तरकार - डॉ.एन.सुन्दरम 2000