आराध्य देव शिव वेद ध्वनि के साथ गीत और नृत्य प्रिय हैं।
वे हाथ में परशु लिए हुए हैं।
मेरे हाथ की चूड़ियाँ अपने आप ढीला होकर गिरानेवाले,
मेरे हृदय तो आकृष्ट करनेवाले द्रवीभूत करनेवाले चित्त चोर हैं।
घनी वाटिकाओं से घिरे सुगन्धित व ज्योत्स्ना से सुशोभित
ब्रह्मपुरम में प्रतिष्ठित प्रभु यही तो हैं।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम 2010