हमारे प्रभु शिव गगन में विचरनेवाले
दुष्ट त्रिपुर राक्षसों की किलाओं को भस्म कर जलाने वाले हैं।
वे हाथ में ब्रह्म कपाल लेकर घर घर भिक्षा लेने वाले हैं।
वे मेरे चित्त चोर हैं।
वे भुजंग और आरग्वधमाला से सुशोभित हैं।
उमादेवी को अर्धांग में लिए हुए प्रभु वृषभारूढ़ होकर दर्शन दे रहे है।
समृद्ध ब्रह्मपुरम में प्रतिष्ठित प्रभु यही तो हैं।
रूपान्तरकार डॉ.एन.सुन्दरम 2010